शिवशंकर संसार की आरण्या शक्ति के रूप में जाने जाते हैं। वह देवताओं में सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यह प्रमुख त्रिदेवों में से एक देव हैं। इन्हें संहार का देवता कहा जाता है। इनका स्वरूप सौम्य व रौद्र दोनों ही रूपों में विख्यात है। शिव अनादि तथा संसार की प्रकिया का श्रोता माने जाते हैं। उन्हें काल एवं महाकाल ज्योतिषशास्त्र का आधार भी माना गया है। वैसे तो महादेव कल्याणकारी माने गए हैं परन्तु इन्होंने लय-प्रलय दोनों को अपने भीतर आधीन किया हुआ है। शिव अपने भक्तों से सरलता से प्रसन्न हो जाते हैं। सभी भक्तों को समान दृष्टि से देखने के कारण उन्हें महादेव के नाम से जाना जाता है।
शिवलिंग भगवान शिव का प्रतिमाविहीन चिन्ह है। यह प्राकृतिक रूप से स्वयंभू व अधिकतर शिव मंदिरों में स्थापित होता है। वेद शास्त्रों में शिवलिंग को परम कल्याणकारी शुभ सृजन ज्योति के रूप में बताया गया है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तथा हमारा शरीर इस ज्योति के रूप में ही समाहित है। भृकुटी के बीच हमारी आत्मा या स्वयं हम इस संसार में एक बिंदु रूप में है। वातावरण सहित घूमती धरती तथा सम्पूर्ण अनंत ब्रह्माण्ड की धुरी ही शिवलिंग है।
शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्माण्ड में घूम रही आकाशगंगा और उन पिंडो के समान प्रतीत होता है जहां जीवन संभव है। वायु पुराण के अनुसार प्रलय काल के बाद जिसमें पूरी सृष्टि लीन हो कर पुनः सृष्टि संचार के समय प्रकट होती है उस शक्ति को शिवलिंग कहा गया है। शिवलिंग ईश्वर के निराकार स्वरूप का प्रतीक है।
प्रमुख रूप से दो प्रकार के शिवलिंग बताए गए हैं। प्रथम है आकाशीय या उल्का शिवलिंग- यह काला अंडाकार रूप लिए हुए रहता है। भारत में इस प्रकार के शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। दूसरे प्रकार के शिवलिंग मानव द्वारा निर्मित होते हैं। सोमवार के दिन शिवलिंग की पूजा करने से शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। ऐसा करने से शिव की कृपा प्राप्ति होती है।