चैत्र माह की पूर्णिमा को हनुमान जी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला पर्व हनुमान जयंती के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान विष्णु के राम अवतार के परम भक्त थे हनुमान जी। बजरंगबली भगवान शिव के अवतार थे जो राम जी की सहायता करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। हनुमान जयंती के दिन भक्त बड़ी उत्सुकता और जोश के साथ समर्पित हो कर इनकी पूजा करते हैं। हनुमान जी ब्रह्मचारी थे जिसके कारण महिलाओं द्वारा इनकी पूजा के समय मूर्ति को छूना वर्जित है। इनको चढ़ाया गया चमेली का तेल, पान का पत्ता सब पुरुषों द्वारा ही किया जाता है।
कथन अनुसार हनुमान जी की उत्पत्ति अंजनी के उदर से हुई थी। बालपन में एक बार जब बजरंगबली को भूख लगी तो वह सूर्य को फल समझकर खाने पहुंच गए थे। सूर्य देव को हनुमान जी के अवतार का पता था इसलिए उन्होंने अपने तेज से उन्हें जलने नहीं दिया। उस दिन पर्व तिथि होने के कारण राहु सूर्य पर ग्रहण लगाने आया था। हनुमान जी को देख वह भयभीत हो कर इंद्र देव के पास जा पंहुचा।
अवतार से अनजान वह हनुमान जी पर वज्र से प्रहार कर देते हैं। ऐसा करने से उनकी हड्डी टूट जाती है। यह देख वायु देव क्रोधित हो जाते हैं तथा संसार में प्रवाहित वायु को रोक देते हैं। सभी प्राणी और देवता संकट में उनसे पुनः सब पहले जैसा करने की प्रार्थना करते हैं। हनुमान जी को ठीक कर सभी उन्हें अनेकों आशीर्वाद और शक्ति प्रदान करते हैं। इसी दिन से वह हनुमान भी कहलाए थे। उनके ठीक हो जाने पर वायु देव भी सब पुनः सही कर देते हैं।
इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है। मंदिरों में पीले सिंदूर से इनका विशेष श्रृंगार भी किया जाता है। घरों व मंदिरों में हनुमान चालीसा , सुन्दरकांड का पाठ किया जाता है। हनुमान जी के भजन से पूरा मंदिर परिसर गूँज उठता है। जगह -जगह भण्डारे किए जाते हैं। गरीबों को खाना खिलाया जाता है दान -पुण्य भी किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से बूंदी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।